गुरु दत्त, जिन्हें अक्सर “भारत का ऑर्सन वेल्स” कहा जाता है, प्रतिष्ठित क्लासिक्स ‘प्यासा’ (1957) और ‘साहिब बीबी और गुलाम’ (1960) की सफलता के पीछे उन्ही की प्रतिभा है। भारतीय सिनेमा में आज भी उनकी प्रतिभा अद्वितीय है। अपने छोटे लेकिन सफल करियर में, उन्होंने न केवल ब्लॉकबस्टर फिल्मों का निर्माण और अभिनय किया, बल्कि जॉनी वॉकर और वहीदा रहमान जैसे कई नए कलाकारों को भी पेश किया, जो अपने आप में दिग्गज कलाकार बन गए।
भारत के ऑर्सन वेल्स
रिलीज़ के 60 से अधिक वर्षों बाद भी, गुरुदत्त की प्रतिष्ठित फ़िल्में दुनिया भर के फ़िल्म संस्थानों में अध्ययन की अनिवार्य सामग्री हैं। छात्र, आलोचक और अभिनेता उनकी सिनेमाई प्रतिभा की आज भी प्रशंसा करते हैं। लेकिन अपने सफल करियर के बावजूद, गुरु दत्त का निजी जीवन उथल-पुथल भरा रहा, जिसमें एक परेशान शादी, एक असफल प्रेम कहानी और दिल टूटने की त्रासदी शामिल थी।
गुरु दत्त: सिनेमाई प्रतिभा का उदय
9 जुलाई, 1925 को बेंगलुरु, भारत में वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण के रूप में जन्मे गुरु दत्त ने अपने किशोरावस्था में ही कोलकाता में एक टेलीफोन ऑपरेटर के रूप में काम करना शुरू कर दिया। लेकिन इस काम में उनका मन नहीं लगा और जल्द ही वह फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाने के लिए मुंबई चले गए। मुंबई में, लोग उन्हें उनके उपनाम “गुरु दत्त” से पुकारने लगे, और यही नाम उनसे हमेशा के लिए जुड़ गया। मुंबई में, उन्हें अभिनय और छायांकन के क्षेत्र में अपनी रचनात्मक प्रतिभा को निखारने के कई अवसर मिले। उन्होंने कई फिल्मों में छोटी-छोटी भूमिकाएँ निभाकर अपने करियर की शुरुआत की और बाद में वह प्रसिद्ध प्रोडक्शन हाउस, प्रभात फिल्म कंपनी में पूर्णकालिक काम करने लगे।
बाज़ी और सफलता की शुरुआत
इसी दौरान, प्रमुख अभिनेता देव आनंद ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें अपनी आगामी फिल्म ‘बाजी’ (1951) में निर्देशक की भूमिका की पेशकश की। फिल्म एक ब्लॉकबस्टर हिट साबित हुई, और गुरु दत्त रातों-रात सफलता की बुलंदियों पर पहुंच गए। ‘बाज़ी’ के बाद कई सुपरहिट फिल्मों ने गुरु दत्त को न केवल एक उत्कृष्ट निर्देशक के रूप में स्थापित किया, बल्कि एक गहन अभिनेता के रूप में भी उनकी पहचान बनाई। इसके बाद दत्त ने कई सफल फ़िल्में दीं: ‘आर पार’ (1954), ‘मिस्टर एंड मिसेज़ ’55’ (1955), ‘सैलाब’ (1956), और ‘प्यासा’ (1957)। टाइम पत्रिका ने उनकी प्रतिष्ठित फिल्म ‘प्यासा’ को भी अब तक की 10 सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक माना है।
तीव्र सामाजिक चेतना का फिल्मकार
गुरु दत्त जल्द ही जनता के प्रिय बन गए, क्योंकि उनकी फिल्में उन विषयों की मंत्रमुग्ध कर देने वाली छवि प्रस्तुत करती थीं, जो आम आदमी के दिल को छू जाती थीं। उनकी फ़िल्मों में गरीबी, बेरोज़गारी और वर्गवाद जैसे विषयों को मार्मिक रूप से उजागर किया जाता था। उन्होंने उस समय की सामाजिक उदासीनता का बेरहमी से चित्रण किया और उभरते भारत में बदलाव और समानता के सशक्त संदेश दिए।
वे मानवीय भावनाओं को व्यक्त करने के लिए संगीत का उपयोग करने में भी अग्रणी थे। यह उनकी प्रसिद्ध फिल्म ‘प्यासा’ में स्पष्ट रूप से दिखता है, जहां उन्होंने अभिनेत्री वहीदा रहमान के साथ मिलकर प्रसिद्ध गीतकार साहिर लुधियानवी द्वारा लिखे गए भावपूर्ण गीतों की एक संगीतमय दुनिया रची।
दुखद व्यक्तिगत जीवन और अंत
1953 में गुरु दत्त की शादी गायिका गीता रॉय से हुई थी। कहा जाता है कि यह शादी तब तक खुशहाल थी जब तक वहीदा रहमान उनकी ज़िन्दगी में नहीं आईं। 1956 की फिल्म ‘सी.आई.डी.’ के लिए गुरु दत्त एक नए चेहरे की तलाश कर रहे थे, और जैसे ही उन्होंने खूबसूरत वहीदा को देखा, वह उन पर मोहित हो गए। समय के साथ दोनों के बीच नज़दीकियां बढ़ती गईं। गीता, गुरु को जाने देने के लिए तैयार नहीं थीं, और वहीदा ने साफ कर दिया कि वह इस रिश्ते में दूसरी महिला की भूमिका नहीं निभाएंगी।
गुरु दत्त की आत्महत्या से हुई दुखद मृत्यु
गुरु दत्त का अशांत व्यक्तिगत जीवन उनके मन पर कहर बरपा रहा था, जिससे उनका मोहभंग हो गया और वह आत्मघाती विचारों से ग्रस्त हो गए। जैसा कि नसरीन मुन्नी कबीर ने ‘गुरु दत्त: ए लाइफ इन सिनेमा’ में लिखा है, “दत्त का निजी जीवन उथल-पुथल में था, और वह बहुत धूम्रपान करते थे और शराब का सेवन करते थे।” 1963 में, वहीदा रहमान के साथ गुरु का रिश्ता टूट चुका था, और वह गीता से भी अलग हो गए थे। दुख की बात है कि 10 अक्टूबर, 1964 को महज 39 वर्ष की आयु में फिल्म निर्माता ने आत्महत्या कर ली। यह उनका तीसरा आत्महत्या प्रयास था। कहा जाता है कि वह शराब और नींद की गोलियों का सेवन कर रहे थे, और पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चलता है कि उनकी मृत्यु दुर्घटनावश हुई हो सकती है। अफसोस की बात है कि गीता दत्त को मानसिक रूप से गहरा आघात पहुंचा और 1972 में 41 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।